काळ री अगवाणी में
आ तै है
कै अेक दिन
चल्या जावांगा
आपां सगळा
अर अठै इज छूट ज्यावैली
आ दुनियां
अै मकान
अै डागळा
अै गाड्यां
अर दूजो सगळो ई साजो-सामान
ज्हकौ जुटायौ हो आपां
काळ रै सामीं
कै फेरूं
वीं री अगवाणी में।
साथै ही छूट ज्यावैला
अठै इज
आपणां सगा-परसंगी
बेटा-पोता-दोयता
अर वै सगळा इज
ज्हका नीं गया
आपां सूं आगै
आपणी अगवाणी सारू।
हां, सगळा रै‘वगा अठै इज
अेक आपां नैं ई जाणो है
अब इण सारू इज
समूळी नसवरता
अर निसारता रै बावजूद ई
वां रै सामीं
आपरला अै उपक्रम है।
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Friday, December 25, 2009
Friday, November 6, 2009
कुमार अजय री राजस्थानी कविता
मां
अेयरकंडीसन कमरै मांय
सुख सेज ऊपरां
जबरी नींद लेंवतां थकां
घणी बार सुणी है म्हैं
थांरी लोरी री तान।
रस भरै
पांच तारै होटल मांय
जीम्यां पछै ई
रोजीनै सुणीजै
उण फूंकणी री मुधरी तान
जकी सूं फूंक मार`र
सिलगांवती थूं चूल्हौ
अर सेकती रोट्यां।
म्हांरै बंगलै री बगीची मांय
खिल्योड़ा गुलाबां सूं खिंडती सौरम
अेकदम फीकी है
उण सौरम रै आगै
जकी आवती
थांरै थेपड़ी थापतै हाथां सूं।
सै-कीं है साव सूनौ
रोळ-गिदोळ
थांरै बिनां मां!
थंनै छोड`र
बाकी सगळा गना
अेक न्यारा ई हिसाब सूं चालै
पण थूं है अेकदम अळगी
वीं जोड़-बाकी
अर गुणा-भाग सूं
म्हांरी मां।
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