Friday, November 6, 2009

कुमार अजय री राजस्थानी कविता

मां


अेयरकंडीसन कमरै मांय

सुख सेज ऊपरां

जबरी नींद लेंवतां थकां

घणी बार सुणी है म्हैं

थांरी लोरी री तान।

रस भरै

पांच तारै होटल मांय

जीम्यां पछै ई

रोजीनै सुणीजै

उण फूंकणी री मुधरी तान

जकी सूं फूंक मार`र

सिलगांवती थूं चूल्हौ

अर सेकती रोट्यां।


म्हांरै बंगलै री बगीची मांय

खिल्योड़ा गुलाबां सूं खिंडती सौरम

अेकदम फीकी है

उण सौरम रै आगै

जकी आवती

थांरै थेपड़ी थापतै हाथां सूं।


सै-कीं है साव सूनौ

रोळ-गिदोळ

थांरै बिनां मां!

थंनै छोड`र

बाकी सगळा गना

अेक न्यारा ई हिसाब सूं चालै

पण थूं है अेकदम अळगी

वीं जोड़-बाकी

अर गुणा-भाग सूं

म्हांरी मां।

2 comments:

  1. कविता का शत प्रतिशत अर्थ तो नहीं समझा. पर इसके भाव इसकी संवेदना मार्मिक है. विशेषकर ये पंक्तियाँ -

    म्हांरै बंगलै री बगीची मांय
    खिल्योड़ा गुलाबां सूं खिंडती सौरम
    अेकदम फीकी है
    उण सौरम रै आगै
    जकी आवती
    थांरै थेपड़ी थापतै हाथां सूं।

    यही कह सकता हूँ - माँ ये कैसी मजबूरी है.
    - सुलभ

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  2. मां तुझे सलाम...

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